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Crop residue

घर पर ही यह चारा उगाकर कमाएं दोगुना मुनाफा, पशु और खेत दोनों में आएगा काम

घर पर ही यह चारा उगाकर कमाएं दोगुना मुनाफा, पशु और खेत दोनों में आएगा काम

भारत के किसानों के लिए कृषि के अलावा पशुपालन का भी अपना ही एक अलग महत्व होता है। छोटे से लेकर बड़े भारतीय किसान एवं ग्रामीण महिलाएं, पशुपालन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

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ग्रामीणों की अर्थव्यवस्था को एक ठोस आधार प्रदान करने के अलावा, खेती की मदद से ही पशुओं के लिए चारा एवं फसल अवशेष प्रबंधन (crop residue management) की भी व्यवस्था हो जाती है और बदले में इन पशुओं से मिले हुए ऑर्गेनिक खाद का इस्तेमाल खेत में ही करके उत्पादकता को भी बढ़ाया जा सकता है।

एजोला चारा (Azolla or Mosquito ferns)

अलग-अलग पशुओं को अलग-अलग प्रकार का चारा खिलाया जाता है, इसी श्रेणी में एक विशेष तरह का चारा होता है जिसे 'एजोला चारा' के नाम से जाना जाता है। 

यह एक सस्ता और पौष्टिक पशु आहार होता है, जिसे खिलाने से पशुओं में वसा एवं वसा रहित पदार्थ वाली दूध बढ़ाने में मदद मिलती है। 

अजोला चारा की मदद से पशुओं में बांझपन की समस्या को दूर किया जा सकता है, साथ ही उनके शरीर में होने वाली फास्फोरस की कमी को भी दूर किया जा सकता है।

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इसके अलावा पशुओं में कैल्शियम और आयरन की आवश्यकता की पूर्ति करने से उनका शारीरिक विकास भी बहुत अच्छे से हो पाता है।

समशीतोष्ण जलवायु में पाए जाने वाला यह अजोला एक जलीय फर्न होता है।

अजोला की लोकप्रिय प्रजाति पिन्नाटा भारत से किसानों के द्वारा उगाई जाती है। यदि अजोला की विशेषताओं की बात करें तो यह पानी में बहुत ही तेजी से वृद्धि करते हैं और उनमें अच्छी गुणवत्ता वाले प्रोटीन होने की वजह से जानवर आसानी से पचा भी लेते है। अजोला में 25 से 30% प्रोटीन, 60 से 70 मिलीग्राम तक कैल्शियम और 100 ग्राम तक आयरन की मात्रा पाई जाती है।

कम उत्पादन लागत वाला वाला यह चारा पशुओं के लिए एक जैविक वर्धक का कार्य भी करता है।

एक किसान होने के नाते आप जानते ही होंगे, कि रिजका और नेपियर जैसा चारा भारतीय पशुओं को खिलाया जाता रहा है, लेकिन इनकी तुलना में अजोला पांच गुना तक अच्छी गुणवत्ता का प्रोटीन और दस गुना अधिक उत्पादन दे सकता है।

अजोला चारा उत्पादन के लिए आपको किसी विशेषज्ञ की जरूरत नहीं होगी, बल्कि किसान खुद ही आसानी से घर पर ही इसको ऊगा सकते है।

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इसके लिए आपको क्षेत्र को समतल करना होगा और चारों ओर ईंट खड़ी करके एक दीवार बनाई जाती है।

उसके अंदर क्यारी बनाई जाती है जिससे पानी स्टोर किया जाता है और प्लांट को लगभग 2 मीटर गहरे गड्ढे में बनाकर शुरुआत की जा सकती है। 

इसके लिए किसी छायादार स्थान का चुनाव करना होगा और 100 किलोग्राम छनी हुई मिट्टी की परत बिछा देनी होगी, जोकि अजोला को पोषक तत्व प्रदान करने में सहायक होती है।

इसके बाद लगभग पन्द्रह लीटर पानी में पांच किलो गोबर का घोल बनाकर उस मिट्टी पर फैला देना होगा।

अपने प्लांट में आकार के अनुसार 500 लीटर पानी भर ले और इस क्यारी में तैयार मिश्रण पर, बाजार से खरीद कर 2 किलो ताजा अजोला को फैला देना चाहिए। इसके पश्चात 10 लीटर हल्के पानी को अच्छी तरीके से छिड़क देना होगा।

इसके बाद 15 से 20 दिनों तक क्यारियों में अजोला की वर्द्धि होना शुरू हो जाएगी। इक्कीसवें दिन की शुरुआत से ही इसकी उत्पादकता को और तेज करने के लिए सुपरफ़ास्फेट और गोबर का घोल मिलाकर समय-समय पर क्यारी में डालना होगा। 

यदि आप अपने खेत से तैयार अजोला को अपनी मुर्गियों को खिलाते हैं, तो सिर्फ 30 से 35 ग्राम तक खिलाने से ही उनके शरीर के वजन एवं अंडा उत्पादन क्षमता में 20% तक की वृद्धि हो सकती है, एवं बकरियों को 200 ग्राम ताजा अजोला खिलाने से उनके दुग्ध उत्पादन में 30% की वृद्धि देखी गई है।

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अजोला के उत्पादन के दौरान उसे संक्रमण से मुक्त रहना अनिवार्य हो जाता है, इसके लिए सीधी और पर्याप्त सूरज की रोशनी वाले स्थान को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हालांकि किसी पेड़ के नीचे भी लगाया जा सकता है लेकिन ध्यान रहे कि वहां पर सूरज की रोशनी भी आनी चाहिए।

साथ ही अजोला उत्पादन के लिए 20 से 35 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान को उचित माना जाता है।

सही मात्रा में गोबर का घोल और उर्वरक डालने पर आपके खेत में उगने वाली अजोला की मात्रा को दोगुना किया जा सकता है। 

यदि आप स्वयं पशुपालन या मुर्गी पालन नहीं करते हैं, तो उत्पादन इकाई का एक सेंटर खोल कर, इस तैयार अजोला को बाजार में भी बेच सकते है। 

उत्तर प्रदेश, बिहार तथा झारखंड जैसे राज्यों में ऐसी उत्पादन इकाइयां काफी मुनाफा कमाती हुई देखी गई है और युवा किसान इकाइयों के स्थापन में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। 

किसान भाइयों को जानना होगा कि पशुओं के लिए एक आदर्श आहार के रूप में काम करने के अलावा, अजोला का इस्तेमाल भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में हरी खाद के रूप में भी किया जाता है। 

इसे आप 15 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से अपने खेत में फैला सकते हैं, तो आपके खेत की उत्पादकता आसानी से 20% तक बढ़ सकती है। लेकिन भारतीय किसान इसे खेत में फैलाने की तुलना में बाजार में बेचना ज्यादा पसंद करते हैं, क्योंकि वहां पर इसकी कीमत काफी ज्यादा मिलती है।

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आशा करते हैं, घर में तैयार किया गया अजोला चारा भारतीय किसानों के पशुओं के साथ ही उनके खेत के लिए भी उपयोगी साबित होगा और हमारे द्वारा दी गई यह जानकारी उन्हें पूरी तरीके से पसंद आई होगी।

अमेरिकी वैज्ञानिक टीम बिहार में बनाएगी न्यू कृषि मॉडल, पसंद आया बिहार का जलवायु

अमेरिकी वैज्ञानिक टीम बिहार में बनाएगी न्यू कृषि मॉडल, पसंद आया बिहार का जलवायु

पटना। विश्व के कई देश कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने की जुगत में लगे हुए हैं। लेकिन जलवायु अनुकूल न होने के कारण कई स्थानों पर खेती को मदद नहीं मिल पाती है। अमेरिकन वैज्ञानिकों की टीम भी भारत में कृषि मॉडल बनाने के लिए सर्वे कर रही है। अमेरिकन वैज्ञानिकों की टीम को बिहार की जलवायु पसंद आयी है। वह जल्दी ही बिहार में न्यू कृषि मॉडल बनाने जा रहे हैं, जिससे खेती और किसानों फायदा मिलेगा। बिहार में बीसा समिट (BISA-CIMMYT) की तरफ से जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इस कार्यक्रम को बिहार सरकार ने सभी 38 जिलों में लागू कर दिया है। बीते तीन दिनों से अमेरिका के कोर्नेल विश्वविद्यालय से वैज्ञानिकों की टीम बिहार में जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम संचालित कर रही है। इस दौरान अमेरिकी वैज्ञानिकों की टीम को बिहार की जलवायु बेहद पसंद आयी है।
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टीम ने जुटाई फसल अवशेष प्रबंधन की जानकारी

- अमेरिकन वैज्ञानिकों की टीम ने बिहार के भगवतपुर जिले के एक गांव, जो की सीआरए (Climate Resilient Agriculture (CRA) Programme under Jal-Jeevan-Haryali Programme) यानी जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के जल-जीवन-हरियाली कार्यक्रम के अंतर्गत आता है, का दौरा किया है। यहां मुआयना के बाद टीम ने फसल अवशेष प्रबंधन (Crop Residue Management) की जानकारी भी जुटाई है। इसके अलावा बीसा पूसा ( बोरोलॉग इंस्टीच्यूट फॉर साऊथ एशिया - Borlaug Institute for South Asia (BISA)) में चल रहे लांग ट्रर्म ट्राइल्स, जीरो टिलेज विधि और मेड़ विधि के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाई हैं। जल्दी ही बिहार में इसका असर देखने को मिलेगा।
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- बिहार सरकार द्वारा चलाए जा रहे जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम की पूरे विश्व में सराहना हो रही है। यहां आकर कई देशों के वैज्ञानिक जानकारी प्राप्त कर रहे हैं। बिहार समेत देश के अन्य कई कृषि संस्थानों के साथ मिलकर जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम किसानों तक पहुंच रहे हैं। इससे फसल का विविधीकरण करके और नई तकनीकी का उपयोग करके किसानों को फायदा देने की योजना बनाई जा रही है। जो आगामी दिनों में प्रभावी रूप से दिखाई देगी। ------ लोकेन्द्र नरवार
देश में हो रही चारे कमी की हालात को लेकर वैज्ञानिकों ने जाहिर की चिंता

देश में हो रही चारे कमी की हालात को लेकर वैज्ञानिकों ने जाहिर की चिंता

भारत के पशु पालने वाले लोगों के बीच एक नई समस्या खड़ी हो रही है। दरअसल, हाल ही में रिपोर्ट किया गया है कि देश में चारे की भारी कमी हो रही है, वहीं दूसरी ओर पशुधन में बढ़ोतरी हो रही है। इस तरह से पशु पालने वाले लोगों को सामंजस्य बिठाने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। आंकड़ों में बात करें तो मौजूदा समय में देश में 11 फीसदी हरे चारे, 23 फीसदी सूखे चारे और 29 फीसदी दाने की कमी है। वहीं, इसी बीच 1.23 फीसदी पशुधन की बढ़ोतरी हुई है, जिसकी वजह से सामंजस्य बिठाना मुश्किल हो रहा है। आप सोच रहे होंगे कि ऐसा तो पहले कभी नहीं सुना, इस बार ऐसा क्या हो गया। तो आपको बता दें कि साल 2022 में, मार्च के महीने से ही भीषण गर्मी पड़नी शुरू हो गई थी, जिसकी वजह से फसलों को भारी नुकसान पहुंचा था। गेहूं की फसल को इतना नुकसान पहुंचा कि आने वाले महीनों में इस फसल के दाम आसमान छूने लगे थे। अब गेहूं की फसल खराब होने का असर चारे पर भी पड़ा है और देश में चारा संकट पशुपालकों के लिए जी का जंजाल बन गया है।

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वैज्ञानिकों की मानें तो यह केवल चारा संकट की शुरुआत है, अभी आने वाले दिनों में यह संकट और भी गहरा सकता है। क्योंकि देश में पशुधन तेजी से बढ़ रहा है और डिमांड-सप्लाई के बीच अंतर को पाट पाना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में वैज्ञानिक खासे परेशान हैं और उनका मानना है कि इसका हल जल्दी से जल्दी निकाला जाना चाहिए। हाल ही में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (CHAUDHARY CHARAN SINGH HARYANA AGRICULTURAL UNIVERSITY, HISAR - HAU) में एक सेमिनार का आयोजन किया गया था। इस सेमिनार का मकसद चारे की उत्पादकता को बढ़ाना है, ताकि मौजूदा समय में जो संकट तेजी से पशुपालकों को परेशान करने आ रहा है, उससे निजात दिलाई जा सके। इसमें शामिल हुए कुलपति प्रो बीआर कांबोज ने कहा कि पशुओं को अच्छा क्वालिटी वाला चारा देना जरूरी है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो वे दूध कम देने लगेंगे। ऐसे में पशुपालकों को क्वालिटी वाले चारे के बारे में जानकारी देना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि फसल के अवशेषों (Crop Residue) को पशुओं को खिलाया जाना चाहिए। इस तरह से अवशेषों को जलाने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी जिससे वायु प्रदूषण फैलता है।

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इस सेमिनार में यूनिवर्सिटी के रिसर्च डायरेक्टर डॉ. जीत राम शर्मा ने बताया कि विश्वविद्यालय ने चारा की 51 किस्में तैयार की हैं, जिनकी क्वालिटी कमाल की है। नई किस्में पशुओं के लिए बढ़िया हैं, क्योंकि ये पचती जल्दी हैं और अच्छा पोषण देती हैं।
पराली से निपटने के लिए सरकार ने लिया एक्शन, बांटी जाएंगी 56000 मशीनें

पराली से निपटने के लिए सरकार ने लिया एक्शन, बांटी जाएंगी 56000 मशीनें

उत्तर भारतीय राज्यों में पराली की समस्या (यानी फसल अवशेष or Crop residue) एक बहुत बड़ी समस्या है। अभी खरीफ का सीजन ख़त्म होते ही धान की पराली को किसान आग लगा देते हैं, जिससे प्रदूषण फैलता है और वातावरण का तापमान बढ़ता है जो पर्यावरण के लिए अनुकूल नहीं है। पराली जलाने के कारण कई अन्य समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं, जैसे शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ जाना। अभी कुछ वर्षों से सर्दियों में दिल्ली के वायु प्रदूषण के स्तर में बढ़ोत्तरी के लिए हरियाणा और पंजाब के किसानों द्वारा जलाई गई पराली को जिम्मेदार माना गया है, इसको देखते हुए केंद्र सरकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक किसानों से पराली का प्रबंधन ( फसल अवशेष प्रबन्धन ) करने के लिए कहते हैं। लेकिन जमीन पर इसका कोई खास असर नहीं दिखता, क्योंकि किसानों के पास पराली के प्रबंधन के लिए उचित मशीनें और तकनीक नहीं है, जिससे किसान अपनी पराली को जलाने पर मजबूर हो जाते हैं।

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चूंकि फिर से खरीफ की फसल नजदीक है और पराली का टाइम आने वाला है, जिसने सरकार की रातों की नींद उड़ा दी है। इसलिए सरकार पराली प्रबंधन के लिए नए प्रयास करने में जुट गई है, इसके तहत पंजाब की सरकार ने फैसला लिया है कि सरकार इस साल किसानों को 56,000 मशीनों का वितरण करेगी, इन मशीनों के द्वारा पराली का उचित प्रबंधन किया जा सकेगा। पंजाब सरकार में कृषि एवं कल्याण मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने कहा है कि सरकार वो हर संभव प्रयास करेगी जिसके द्वारा किसानों को पराली जलाने से रोका जा सके। पराली से होने वाले वायु प्रदूषण को रोकने के लिए पंजाब सरकार पहले ही बहुत सारे उपाय कर चुकी है, इसके तहत सरकार ने साल 2018-2022 तक 90,422 मशीनें किसानों को पहले ही वितरित कर चुकी है। पंजाब सरकार ने मशीनों के मामले में एक अलग निर्णय लेते हुए बताया है कि अब छोटे किसानों को अलग तरह की मशीनें उपलब्ध करवाई जाएंगी, जिनमें सुपर सीडर, हैप्पी सीडर, जीरो ड्रिल जैसी मशीनें शामिल होंगी, ऐसी 500 मशीनें राज्य के 154 प्रखंडों में भेजी जाएंगी।

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इसके साथ ही कृषि कल्याण मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने कहा कि किसानों को अब पराली प्रबंधन के लिए जागरूक किया जाएगा, इस दौरान पंजाब में बड़े स्तर पर जागरूकता अभियान चलाया जाएगा जिसमें पराली जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में किसानों को बताया जाएगा। जागरूकता अभियान के तहत 15 सितम्बर के बाद कृषि विभाग के निदेशक स्तर के अधिकारी और कर्मचारी किसानों के खेतों में जाकर पराली को न जलाने के प्रति किसानों को जागरूक करेंगे। इसके तहत अधिकारी किसानों के घर में भी जाएंगे और उन्हें इससे होने वाली हानि के बारे में बताएंगे। इस जागरूकता अभियान को पूरे पंजाब में फैलाया जाएगा, जिसमें ग्रामीण विकास और पंचायत के अधिकारी, पर्यावरण विभाग, गैर सरकारी संगठन, स्कूलों और कॉलेजों के छात्र शामिल होंगे, इस दौरान अधिकारी किसानों से आग्रह करेंगे की इन मशीनों को वो खरीद लें।

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केंद्र सरकार ने पराली न जलाने पर किसानों को मुआवजा देने वाली स्कीम को स्वीकृति नहीं दी है, जिसे कृषि कल्याण मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया है, साथ ही केंद्र सरकार को किसान विरोधी और पंजाब विरोधी बताया है, इस स्कीम के तहत पंजाब सरकार ने राज्य के धान उत्पादकों को पराली न जलाने के एवज में 2500 रूपये प्रति एकड़ का मुआवजा देने के लिए कहा था। जिसमें 1500 केंद्र सरकार का शेयर था जबकि 1000 रूपये पंजाब सरकार और दिल्ली की सरकार द्वारा मिलकर वहन किया जाना था। लेकिन केंद्र सरकार को यह स्कीम लाभप्रद नहीं दिखी और सरकार ने इस पर अपनी सहमति देने से साफ़ मना कर दिया। धालीवाल ने कहा कि पिछली सरकारों के समय कृषि यंत्रों के वितरण में भारी करप्शन हुआ है, जिसकी रिपोर्ट राज्य सरकार की टेबल पर पहुंच चुकी है। करप्शन करने वाले किसी भी आदमी को बख़्शा नहीं जायेगा।
पराली प्रदूषण से लड़ने के लिए पंजाब और दिल्ली की राज्य सरकार एकजुट हुई

पराली प्रदूषण से लड़ने के लिए पंजाब और दिल्ली की राज्य सरकार एकजुट हुई

पराली आज कल देश की विषम परिस्थिति एवं प्रदुषण का कारण बनी हुई है, शासन प्रशासन दोनों ही इस विषय से चिंतित है। पराली के जलाने से वायु प्रदुषण काफी मात्रा मे बढ़ता जा रहा है जो कई बिमारियों को बुलावा दे रहा है। पंजाब और दिल्ली राज्य सरकार इसको लेकर बेहद सजग है एवं इससे निपटने के लिए कदम से कदम मिलाकर साथ आ गए हैं, जिसकी जानकारी पंजाब राज्य सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल (Kuldeep Singh Dhaliwal) ने दी। धालीवाल जी ने अवगत कराया की राज्य सरकार परस्पर सहमति एवं सहयोग से पराली समस्या (यानी फसल अवशेष or Crop residue) से निजात पाने की दिशा में कार्य करने जा रही है। साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार पे भी निशाना साधते हुए कहा की केंद्र सरकार पूर्व में पराली से निपटने के लिए आर्थिक मदद देने के वादे से मुकर गयी है। दिल्ली राज्य सरकार के मुख्यमंत्री श्री अरविन्द केजरीवाल जी ने भी इस समस्या को गहन विचार विमर्श करते हुए प्राथमिकता दी है, क्यूंकि पराली के जलने के कारण दिल्ली का प्रदूषण काफी हद तक प्रभावित होता है। इससे दिल्ली की जनता को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। पूर्व में इस प्रकार के अनुभवों के कारण दिल्ली सरकार इस समस्या को काफी गंभीरता से ले रही है।

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पंजाब व दिल्ली सरकार किसानो के लिए ४५२ करोड़ की राशि, सब्सिडी वाले कृषि यंत्रों पर देने की घोषणा कर चुकी है। आप सरकार ५००० एकड़ जमीन पर पराली के लिए पूसा बायो डीकम्पोज़र के छिड़काव का उपयोग करेगी, जो कि प्रदुषण नियंत्रण में मुख्य भूमिका निभाएगा। सरकार पराली से सम्बंधित समस्या को हर हाल में दूर करने का भरपूर प्रयास कर रही है। सरकार आधुनिक कृषि यन्त्र एवं द्रव्य पदार्धों की सहायता भी लेगी। पंजाब में धान की खेती लगभग २९-३० लाख हेक्टेयर रकबे में होने का अनुमान है, जिससे अंदाजा है की २० मिलियन टन धान की पुआल पैदा हो सकती है। पंजाब सरकार ने इस समस्या को देखते हुए केंद्र सरकार से मदद मांगी थी, जिसमे केंद्र सरकार ने पंजाब और दिल्ली राज्य प्रत्येक को ३७५ करोड़ की मदद देने की बात संयुक्त प्रस्ताव में कही थी, जिसमे पंजाब व दिल्ली सरकार ने केंद्र से ११२५ का परिव्यय माँगा।

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भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI ) के माध्यम से लागू की जाने वाली पायलट परियोजना के अंतर्गत लगभग २०२३ हेक्टेयर भूमि पर सरकार द्वारा बायो डीकम्पोज़र का छिड़काव किया जायेगा, जिसमे धालीवाल जी ने कुछ जगहों पर मुफ्त में छिड़काव करने की भी बात कही। दिल्ली का वातावरण अत्यधिक यातायात व वाहनों के धुएं से प्रदूषित तो होता ही है, पराली जलाने के कारण और भी दूषित हो जाता है। दिल्ली व पंजाब सरकार किसान हित में योजना बनाने की तैयारी में है ,लेकिन इसके लिए राज्य सरकार के पास पर्याप्त धनकोष नहीं है। इसलिए पंजाब व दिल्ली राज्य सरकार को केंद्र से आर्थिक सहायता की आवश्यक्ता है, जिसके लिए केंद्र सरकार इंकार कर देती है। उपरोक्त में धालीवाल जी ने केंद्र पर आर्थिक मदद न करने का आरोप लगाया है।
पराली मैनेजमेंट के लिए केंद्र सरकार ने उठाये आवश्यक कदम, तीन राज्यों को दिए 600 करोड़ रूपये

पराली मैनेजमेंट के लिए केंद्र सरकार ने उठाये आवश्यक कदम, तीन राज्यों को दिए 600 करोड़ रूपये

खरीफ का सीजन चरम पर है, देश के ज्यादातर हिस्सों में खरीफ की फसल तैयार हो चुकी है। कुछ हिस्सों में खरीफ की कटाई भी शुरू हो चुकी है, जो जल्द ही समाप्त हो जाएगी और किसान अपनी फसल घर ले जा पाएंगे। 

लेकिन इसके साथ ही एक बड़ी समस्या किसान अपने खेत में ही छोड़कर चले जाते हैं, जो आगे जाकर दूसरों का सिरदर्द बनती है, वो है पराली (यानी फसल अवशेष or Crop residue)। पराली एक ऐसा अवशेष है जो ज्यादातर धान की फसल के बाद निर्मित होता है। 

चूंकि किसानों को इस पराली की कोई ख़ास जरुरत नहीं होती, इसलिए किसान इस पराली को व्यर्थ समझकर खेत में ही छोड़ देते हैं। कुछ दिनों तक सूखने के बाद इसमें आग लगा देते हैं ताकि अगली फसल के लिए खेत को फिर से तैयार कर सकें। 

पराली में आग लगाने से किसानों की समस्या का समाधान तो हो जाता है, लेकिन अन्य लोगों को इससे दूसरे प्रकार की समस्याएं होती हैं, जिसके कारण लोग पराली जलाने (stubble burning) के ऊपर प्रतिबन्ध लगाने की मांग लम्बे समय से कर रहे हैं। 

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विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तर भारत में ख़ास तौर पर पंजाब और हरियाणा में जो भी पराली जलाई जाती है, उसका धुआं कुछ दिनों बाद दिल्ली तक आ जाता है, जिसके कारण दिल्ली में वायु प्रदुषण के स्तर में तेजी से बढ़ोत्तरी होती है। 

इससे लोगों का सांस लेना दूभर हो जाता है, इसको देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से पराली के प्रबंधन को लेकर ठोस कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। 

पराली की वजह से लोगों को लगातार हो रही समस्याओं को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों ने अलग-अलग स्तर कई प्रयास किये हैं, जिनमें पराली का उचित प्रबंधन करने की भरपूर कोशिश की गई है ताकि किसान पराली जलाना बंद कर दें। 

इस साल भी खरीफ का सीजन आते ही केंद्र सरकार ने पराली के मैनेजमेंट (फसल अवशेष प्रबन्धन) को लेकर कमर कस ली है, जिसके लिए अब सरकार एक्टिव मोड में काम कर रही है। 

अभी तक सरकार दिल्ली के आस पास तीन राज्यों के लिए पराली प्रबंधन के मद्देनजर 600 करोड़ रुपये का फंड आवंटित कर चुकी है। यह फंड हरियाणा, पंजाब तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पराली मैनेजमेंट के लिए जारी किया गया है।

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ने पराली मैनेजमेंट के लिए राज्यों की तैयारियों की समीक्षा के लिए बुलाई गई उच्चस्तरीय बैठक में बताया कि, पिछले 4 सालों में केंद्र सरकार ने पराली से छुटकारा पाने के लिए किसानों को 2.07 लाख मशीनों का वितरण किया है। 

जो पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों को वितरित की गईं हैं। बैठक में तोमर ने कहा कि केंद्र सरकार किसानों के द्वारा पराली जलाने को लेकर बेहद चिंतित है। 

पराली मैनेजमेंट के मामले में राज्यों की सफलता तभी मानी जाएगी जब हर राज्य में पराली जलाने के मामले शून्य हो जाएं, यह एक आदर्श स्थिति होगी। 

इस लक्ष्य को पाने के लिए राज्य सरकारों को कड़ी मेहनत करनी होगी और अपने यहां के किसानों को पराली मैनेजमेंट के प्रति जागरूक करना होगा, ताकि किसान पराली जलाने के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं को गंभीरता से समझ पाएं।

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बैठक में कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि पराली जलाने के बेहद नकारात्मक परिणाम हमारे पर्यावरण के ऊपर भी होते हैं। ये परिणाम अंततः लोगों के ऊपर भारी पड़ते हैं। 

ऐसे में राज्यों के जिलाधिकारियों को उच्चस्तरीय कार्ययोजना बनाने की जरुरत है, ताकि एक निश्चित अवधि में ही इस समस्या को देश से ख़त्म किया जा सके। 

मंत्री ने कहा कि राज्यों को और उनके अधिकारियों को गंभीरता से इस समस्या के बारे में सोचना चाहिए कि इसका समस्या का त्वरित समाधान कैसे किया जा सकता है।

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कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि हमें वेस्ट को वेल्थ में बदलने की जरुरत है, यदि किसानों को यह समझ में आ जाएगा कि पराली के माध्यम से कुछ रुपये भी कमाए जा सकते हैं, तो किसान जल्द ही पराली जलाना छोड़ देंगे। 

इसलिए कृषि अधिकारियों को चाहिए कि पूसा संस्थान द्वारा तैयार बायो-डीकंपोजर के बारे में किसानों को बताएं। जहां भी पूसा संस्थान द्वारा तैयार बायो-डीकंपोजर लगा हुआ है वहां किसानों को ले जाकर उसका अवलोकन करवाना चाहिए, 

साथ ही इसके अधिक से अधिक उपयोग करने पर जोर दें, जिससे किसानों को यह पता चल सके कि पराली के द्वारा उन्हें किस प्रकार से लाभ हो सकता है।

पराली से प्रदुषण नहीं अब बढ़ेगी उर्वरकता

पराली से प्रदुषण नहीं अब बढ़ेगी उर्वरकता

पंजाब में मोहाली के किसानों ने प्रदुषण का कारण बनने वाली पराली (यानी फसल अवशेष or Crop residue or stubble) को ही उर्वरकता एवं उपज बढ़ाने का साधन बना लिया है। किसानों ने पराली के अवशेष को मिट्टी के साथ मिश्रित करके भूमि की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने में सहयोगी होने की बात कही है। हालाँकि, यह सच है कि पराली के अवशेष को मृदा में मिलाने से भूमि की उत्पादन क्षमता निश्चित रूप से बढ़ती है, इसी के अनुरूप किसान भी पराली के अवशेष से मृदा को अधिक उपजाऊ और उर्वरकों के व्यय को कम करना चाहते हैं। किसानों की यह पहल प्रदूषण को नियंत्रण में करने के लिए काफी हद तक सहायक होगी।


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सभी राज्यों की राज्य सरकार खरीफ की फसल के समय पराली से होने वाले प्रदूषण को लेकर चिंता में रहती हैं, क्योंकि किसान धान की फसल की कटाई पिटाई के उपरांत शेष बचे फसल अवशेषों को आग लगा देते हैं, जो वातावरण प्रदूषित करने में अहम भूमिका निभाता है। इसकी रोकथाम के लिए सरकार हर संभव प्रयास भी करती है, जैसे पराली से सम्बंधित कृषि उपकरणों पर अनुदान देना, बायो डिकम्पोज़र का छिड़काव एवं पराली जलाने वालों को रोकने के लिए कानूनी सहायता से उनके विरुद्ध कार्यवाही का भी प्रावधान किया है। लेकिन इन सब इंतेज़ाम के बावजूद भी किसानों द्वारा पराली जलाई जाती है। पंजाब के किसानों ने प्रदुषण को कम करने के लिए पराली के अवशेष को ही उर्वरक के रूप में चुना है जो बेहद सराहनीय है।


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उर्वरकों के खर्च में कितनी कमी आयेगी

जब मृदा की उर्वरक क्षमता में वृद्धि आएगी तो निश्चित रूप से अन्य उर्वरकों की आवश्यकता में कमी होगी, जिससे प्रत्यक्ष रूप से लागत में कमी एवं पराली के अवशेष का सही उपयोग होगा, परिणामस्वरूप प्रदुषण से काफी हद तक राहत मिलेगी। पंजाब के किसानों ने उर्वरकों की खपत कम करने के लिए इस प्रकार की अद्भुत पहल की है। पराली के अवशेष को मिट्टी में मिलाकर किसान मृदा की शक्ति को बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं, जिससे आगामी फसल में उनको बिना किसी अतिरिक्त व्यय के बेहतर उत्पादन प्राप्त हो सके। पंजाब में मोहाली जनपद के बदरपुर गाँव निवासी भूपेंद्र नामक किसान, ३० एकड़ जमीन पर आधुनिक कृषि उपकरणों का प्रयोग करके पराली के अवशेष को मिट्टी में मिला देता है, जो समयानुसार सड़ने के बाद उर्वरकों का कार्य करती है।


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आखिर किसान इतने प्रतिबंधों के बावजूद भी क्यों जलाते हैं पराली

पराली को समय से मृदा में न मिला पाने या अन्य उपयोग में न ले पाने की स्तिथि में, किसानों पर इसको ठिकाने लगाने का दवाब बन जाता है। क्योंकि दूसरी फसल के बीजारोपण के लिए किसानों के पास पर्याप्त समय नहीं बचता, मजबूरन किसानों को पराली के अवशेष में आग लगानी पड़ती है, जिससे वह शीघ्रता से दूसरी फसल का कार्य प्रारम्भ कर सकें। पंजाब में पराली जलाने से सम्बंधित काफी मुक़दमे दर्ज होते आये हैं, जिसकी मुख्य वजह यही है।
बिहार सरकार ने रबी रथ महाभियान शुरू कर किसानों को योजनाओं के बारे में बताने का कार्य शुरू कर दिया

बिहार सरकार ने रबी रथ महाभियान शुरू कर किसानों को योजनाओं के बारे में बताने का कार्य शुरू कर दिया

बिहार सरकार ने किसानों की बेहतरी के लिए राज्य में रबी रथ महाभियान यात्रा (Rabi Rath Mahabhiyan) की शुरुआत करदी है। इसके माध्यम से किसानों को उनके हित में जारी की गयीं सभी कल्याणकारी योजनाओं के बारे में बताया जायेगा, जिससे की योजनाओं से किसान कुछ लाभ उठा सकें। बतादें कि किसान अनविज्ञता के कारण बहुत सारी योजनाओं से वंचित रह जाते हैं। रबी रथ महाभियान के जरिये किसानों को अवशेषों के प्रबंधन के बारे में भी समाधान व सुझाव दिए जायेंगे। बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार (Nitish Kumar) द्वारा की गयी यह पहल किसानों के लिए अत्यंत लाभकारी साबित होगी साथ ही बिहार सरकार के द्वारा किसानों के लिए बनायी गयी लाभकारी योजनाओं के बारे में भी पता चलेगा।
माननीय मुख्यमंत्री नितीश कुमार के कर-कमलों द्वारा प्रचार रथों को हरी झण्डी दिखाकर रबी महाभियान 2022 शुभारंभ 
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रबी रथ महाभियान का मुख्य उद्देश्य क्या है ?

रबी रथ महाभियान बिहार सरकार द्वारा किसानों के हित में उठाया गया सराहनीय कार्य है, जिसके माध्यम से किसानों को फसल की सुरक्षा एवं संरक्षण से लेकर कृषि की आधुनिक एवं बेहतरीन तकनीकों के बारे में बताया जायेगा। साथ ही, आजकल पराली से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए किसानों को पराली अवशेष के प्रबंधन के सन्दर्भ में समझाया जायेगा। बिहार राज्य सरकार किसानों के हित में निरंतर कुछ न कुछ कार्य करती आयी है एवं रबी रथ महाभियान से सरकार अपनी कृषि सम्बंधित योजनाओं को प्रत्येक किसान तक पहुँचाने के लिए रबी रथ को बिहार के हर एक गली कूचे गाँव मोहल्ला कस्बा तक पहुँचा रही है।


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रबी रथ महाभियान से किसानों को कितना लाभ मिलेगा ?

रबी रथ महाभियान से किसानों को फसल करने की आधुनिक एवं लाभदायक तकनीक जैसे शेड नेट फार्मिंग इत्यादि हॉर्टिकल्चर तकनीकों को अपनाने से होने वाले लाभ के सन्दर्भ में सम्पूर्ण जानकारी प्रदान की जाएगी। सरकार द्वारा इन तकनीकों को बढ़ावा देने के लिए किसानों को कितना अनुदान मिलेगा इस बारे में भी किसानों को सूचित किया जायेगा। किसानों को समस्त फायदेमंद योजनाओं के बारे में बताया जायेगा। इसके साथ साथ किसान अपनी फसल सम्बंधित किसी भी समस्या को बताकर उसके समाधान का सुझाव ले सकते हैं।

बिहार में किसान चौपाल कब से प्रारम्भ होगी ?

बिहार सरकार राज्य के सभी ग्राम पंचायतों में किसान चौपाल लगाने जा रही है, जिसमें एल ई डी स्क्रीन (LED Screen) लगी गाड़ी के माध्यम से किसानों को फसल एवं अवशेष प्रबंधन (Crop Residue Management) सम्बंधित जानकारी प्रदान की जाएगी। साथ ही, किसानों को फसल की आधुनिक किस्मों के बारे में बताया जाएगा एवं उनकी समस्याओं का भी समाधान दिया जायेगा। सरकार द्वारा किसान की उन्नति के लिए बनाई गयीं सभी योजनाओं के बारे में भी अवगत किया जायेगा और उनका किस प्रकार लाभ प्राप्त करना है, इसके बारे में भी किसानों को सम्पूर्ण जानकारी दी जाएगी।
हरियाणा सरकार ने पराली आदि जैसे अवशेषों से पर्यावरण को बचाने की योजना बनाई

हरियाणा सरकार ने पराली आदि जैसे अवशेषों से पर्यावरण को बचाने की योजना बनाई

यह परियोजना भूमिगत स्तर पर समुदायों में जागरूकता बढ़ाने एवं वैकल्पिक विधियों को अपनाने को लेकर बढ़ावा देने के लिए कार्य करेगी, जिससे फसल अवशेष जलाने की जरूरत कम पड़ेगी। एस एम सहगल फाउंडेशन ने वालमार्ट फाउंडेशन एवं फ्लिपकार्ट फाउंडेशन के साथ जुड़कर कृषि अवशेष के प्रभावी प्रबंधन के लिए पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों को प्रोत्साहन देने और बच्चों एवं युवाओं में पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाने के लिए एक एकीकृत परियोजना को जारी करने का ऐलान किया है। प्रोजेक्ट की विस्तृत जानकारी हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से चण्डीगढ़ में साझा की गई। प्रोजेक्ट को वालमार्ट फाउंडेशन एवं फ्लिपकार्ट फाउंडेशन से मिले अनुदान के जरिए से हरियाणा में क्रियान्वित किया जाएगा। ऐसा कहा जा रहा है, कि इसका उद्देश्य हरियाणा में फसली अवशेषों को जलाने की वजह प्रदूषण के रूप में होने वाले दुष्प्रभाव को कम करना है।

इससे तकरीबन 100 गांवों को सहायता मिलेगी

मृदा के स्वास्थ्य, मानव कल्याण एवं पर्यावरण पर फसल अवशेष जलाने के नुकसानदायक प्रभावों को देखते हुए वॉलमार्ट फाउंडेशन द्वारा वित्त पोषित इस परियोजना का उद्देश्य 100 गांवों के 15,000 किसानों को प्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित करना है। किसानों को मृदा स्वास्थ्य एवं फसल उत्पादकता में सुधार पर ध्यान देने के विषय में बताया जाएगा। इसके साथ ही फसल अवशेष प्रबंधन हेतु पर्यावरण के अनुकूल स्थायी निराकरण के सुझावों के साथ-साथ फसल अवशेष जलाने से होने वाले कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जन को कम करने के संबंध में प्रशिक्षित किया जाएगा। इन समाधानों में फसल अवशेष प्रबंधन के लिए सुपर सीडर का इस्तेमाल और धान की कम अवधि वाली प्रजातियों को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ किसानों के लिए क्षमता निर्माण के कदम शम्मिलित हैं।

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हजारों बच्चों और युवाओं को जागरुक किया जाऐगा

बतादें, कि इसके अलावा फ्लिपकार्ट फाउंडेशन से प्राप्त अनुदान से इन जनपदों के 60 गांवों में 5,000 बच्चों एवं युवाओं में जागरूकता बढ़ाने और पर्यावरण को लेकर जागरूकता उतपन्न करने की दिशा में भी कार्य किया जाएगा। क्योंकि, यह क्षेत्र फसल अवशेष जलाने की परेशानी से सबसे ज्यादा प्रभावित है। साथ ही, यहां परिवार एवं समाज में परिवर्तन लाने के लिए युवा आगे बढ़कर कार्य कर सकते हैं। यह परियोजना जमीनी तौर पर समुदायों में जागरूकता को बढ़ाने और वैकल्पिक तरीकों को अपनाने को लेकर बढ़ावा देने का कार्य करेगी, जिससे फसल अवशेष जलाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। इसके अतिरिक्त, युवाओं में जागरूकता पैदा करने और समाज में बदलाव का वाहक बनने के लिए उन्हें शिक्षित करने पर भी बल दिया जाएगा। एस एम सहगल फाउंडेशन एक सहयोगी नेटवर्क बनाने और हरित भविष्य को प्रोत्साहन देने के लिए शोध संस्थानों, शिक्षाविदों और सामाजिक उद्यमों समेत बहुत से अन्य संबंधित पक्षों के साथ मिलकर कार्य करता रहा है।

सीएम खट्टर का इस पर क्या कहना है

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का कहना है, कि “हरियाणा सरकार बेहतर स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिए वायु गुणवत्ता में सुधार की दिशा में फसलों के अवशेष प्रबंधन का उचित निराकरण खोजने के लिए प्रतिबद्ध है। हमने एक व्यापक रूपरेखा तैयार की है, जिसमें मजबूत एवं कुशल फसल अवशेष प्रबंधन के उपाय, प्रभावी निगरानी व इस लक्ष्य को लेकर लगातार जागरूकता अभियान शम्मिलित हैं। हम वॉलमार्ट फाउंडेशन, फ्लिपकार्ट फाउंडेशन और एस. एम. सहगल फाउंडेशन को इन महत्वपूर्ण परियोजनाओं के लिए बधाई देते हैं और आशा करते हैं कि ये परियोजनाएं हमारे समाज पर सकारात्मक प्रभाव डालेंगी.''
पराली (धान का पुआल) समस्या नही कई समस्या का समाधान है, इसका सदुपयोग करके अधिक से अधिक लाभ उठाए

पराली (धान का पुआल) समस्या नही कई समस्या का समाधान है, इसका सदुपयोग करके अधिक से अधिक लाभ उठाए

Dr SK Singhडॉ एसके सिंह
प्रोफेसर (प्लांट पैथोलॉजी) एवं विभागाध्यक्ष,पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी, प्रधान अन्वेषक, 
अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना,डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा-848 125, 
समस्तीपुर,बिहार 
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सरकार एवं मीडिया दोनों जितना पराली न जलाने का आग्रह कर रहा है ।किसान उतना ही पराली जला रहा है।जिसकी मुख्य वजह यह है कि उसे यह पता ही नही है की वह स्वयं का कितना नुकसान कर रहा है।आज से 10 वर्ष पूर्व पराली जलाने की घटनाएं बहुत ही कम थी। पराली जलाने से किसानों को तात्कालिक फायदा जो भी होता हो,उनका दीर्घकालिक नुकसान बहुत होता है। अधिकांश किसान अब धान की कटाई हारवेस्टर से कराने लगे हैं। इससे खेतों में धान का अवशेष बच जाता है। बचे अवशेष को किसान खेतों में ही जला देते हैं। इससे खेत के साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान पहुंच रहा है। किसान खेतों में बचे फसल अवशेष को खेत में ही जला देते हैं। फसल अवशेषों को जलाने से मिट्टी का तापमान बढ़ता है। जिससे मिट़्टी में उपलब्ध जैविक कार्बन जल कर नष्ट हो जाता है। इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है और धीरे-धीरे मिट्टी बंजर होती चली जाती है। किसानों को यह जानना अत्यावश्यक है की जिस मिट्टी में जितना अधिक से अधिक सूक्ष्मजीव (माइक्रोब्स)होंगे वह मिट्टी उतनी ही सजीव होगी ,उस मिट्टी से हमे अधिक से अधिक उपज प्राप्त होगी । इसके विपरित जिस मिट्टी में जितने कम सूक्ष्मजीव होंगे वह मिट्टी उतनी ही निर्जीव होगी उस मिट्टी से अच्छी उपज प्राप्त करना उतना ही कठिन होगा। मिट्टी में पाए जाने वाले अधिकांश सूक्ष्मजीव मिट्टी की ऊपरी परत में पाए जाते है।जब पराली जलाते है तो मिट्टी की ऊपरी परत के अत्यधिक गरम हो जाने से ये सूक्ष्म जीव मर जाते है जिससे हमारी मिट्टी धीरे धीरे करके खराब होने लगती है और अंततः बंजर हो जाती है।

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हरियाणा सरकार ने पराली आदि जैसे अवशेषों से पर्यावरण को बचाने की योजना बनाई धान के अवशेष को जलाने से मिट्टी में नाइट्रोजन की भी कमी हो जाती है। जिसके कारण उत्पादन घटता है और वायुमंडल में कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा बढ़ती है। इससे वातावरण प्रदूषित होने से जलवायु परिवर्तन होता है। एक अनुमान के मुताबिक एक टन फसल अवशेष जलने से लगभग 60 किलोग्राम कार्बन मोनोआक्साइड, 1460 किलोग्राम कार्बन डाईआक्साइड तथा दो किलोग्राम सल्फर डार्डआक्साइड गैस निकलकर वातावरण में फैलता है, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। किसान जागरूकता के अभाव में पराली जला रहे है। पराली जलाने से हमारे मित्र कीट भारी संख्या में मारे जाते है। जिसकी वजह से तरह तरह की नई बीमारी एवं कीट हर साल समस्या पैदा कर रहे है जिन्हे प्रबंधित करने के लिए हमें कृषि रसायनों के ऊपर निर्भर होना पड़ता है। मृदा के अंदर के हमारे मित्र सूक्ष्मजीव जो खेती बारी में बहुत ही आवश्यक है ,वे भी जलने की वजह से मारे जाते है,जिससे मृदा की संरचना खराब होती है।फसल अवशेष जो सड़ गल कर मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में सहायक होते उस लाभ से भी किसान वंचित रह जाते है।उपरोक्त इतने लाभ से किसान वंचित होकर तात्कालिक लाभ के लिए पराली जलाता है,उसे इसके बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है। आवश्यकता इस बात की है की किसानों को प्रेरित किया जाय की इस कृषि अवशेष को कार्बनिक पदार्थ में बदला जाय ,डिकंपोजर का प्रयोग करके इसे जल्द से जल्द सड़ने गलने हेतु प्रोत्साहित किया जाय । जागरूकता अभियान चला कर पराली जलाने से होने वाले नुकसान से अवगत कराया जाय की किसान तात्कालिक लाभ के लिए अपने दीर्घकालिक फायदे से वंचित हो रहे है।पर्यावरण का कितना नुकसान होता है यह बताने की आवश्यकता नहीं है। धान की पुआल का प्रबंधन टिकाऊ कृषि और पर्यावरण संरक्षण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

धान के पुआल के प्रबंधन का महत्व

धान की पुआल जलाने से वातावरण में हानिकारक प्रदूषक फैलते हैं, जिससे धुंध और खराब वायु गुणवत्ता में योगदान होता है।खेतों में पुआल छोड़ने से मृदा क्षरण होता है, जिससे कृषि भूमि का दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। पुआल के सड़ने से जल निकायों में रसायन और पोषक तत्व निकलते हैं, जिससे जल प्रदूषण होता है। धान के भूसे को मिट्टी में शामिल करने से भूमि में आवश्यक पोषक तत्व वापस लौटकर मिट्टी की उर्वरता में सुधार करते है। धान का भूसा कार्बनिक पदार्थ का एक स्रोत है, जो मिट्टी की संरचना और जल-धारण क्षमता को बढ़ाता है।धान के भूसे को पशुओं के लिए एक आवश्यक चारे के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे वैकल्पिक चारे की मांग कम हो जाएगी और किसानों के लिए लागत में कटौती होगी।

धान की पुआल प्रबंधन में चुनौतियाँ

धान की पराली का प्रबंधन कई चुनौतियाँ यह वायु प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में योगदान देता है। कई किसान अनुचित धान के भूसे प्रबंधन के प्रतिकूल प्रभावों से अनजान हैं। पुआल को मिट्टी में मिलाने के लिए विशेष उपकरण और श्रम की आवश्यकता होती है, जो छोटे पैमाने के किसानों के लिए महंगा हो सकता है।

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धान की पुआल प्रबंधन की विधियाँ

धान अवशेष को पुनः मिट्टी में मिलाना धान के अवशेष की जुताई करके वापस मिट्टी में मिलाने के लिए विशेष जुताई यंत्र की आवश्यकता होती है। लेकिन जुताई करके इन अवशेषों को मिट्टी में मिला देने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है एवं कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ती है और रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता में भारी कमी आती है।

मशरूम की खेती में उपयोग

धान का पुआल मशरूम की खेती के लिए सर्वोत्तम सबस्ट्रेट है । इसका उपयोग करके मशरूम की खेती करके अतरिक्त से प्राप्त किया जा सकता है।

पशु आहार के रूप में उपयोग

धान के भूसे का उपयोग मवेशियों और अन्य पशुओं के लिए पूरक आहार के रूप में किया जा सकता है। जिसकी वजह से चारे की लागत में कमी आती है और पशुओं के लिए पोषण का एक अतिरिक्त स्रोत मिलता है।

ऊर्जा उत्पादन

धान के भूसे का उपयोग बायोमास बिजली संयंत्रों में बिजली पैदा करने के लिए किया जा सकता है। जिसकी वजह से हमे स्वच्छ ऊर्जा मिलती है और जीवाश्म ईंधन की आवश्यकता को कम हो जाती है।

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पलवार (मल्चिंग)

धान के भूसे का उपयोग मिट्टी को ढकने, नमी बनाए रखने और खरपतवार की वृद्धि को रोकने के लिए गीली घास के रूप में किया जा सकता है। जिसकी वजह से जल दक्षता और मिट्टी के तापमान विनियमन में सुधार होता है।

खाद

पोषक तत्वों से भरपूर खाद बनाने के लिए धान के भूसे को अन्य जैविक सामग्रियों के साथ मिलाया जा सकता है। वर्मी कंपोस्ट में इसका उपयोग करके उच्च कोटि की खाद बनाई जा सकती है।कृषि के लिए मूल्यवान जैविक उर्वरक बनाता है।

जैव ईंधन उत्पादन

धान के भूसे को बायोएथेनॉल या बायोगैस जैसे जैव ईंधन में परिवर्तित किया जा सकता है। जिसकी वजह से जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम हो जाती है और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम हो जाता है।

सरकारी नीतियां

कई सरकारों ने धान के भूसे के उचित प्रबंधन को प्रोत्साहित करने के लिए नीतियां बनाई हैं। इनमें टिकाऊ प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहन, पुआल जलाने पर जुर्माना और उपकरण खरीदने के लिए सब्सिडी शामिल है। अभी हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने भी पराली जलाने पर कठोर दण्ड का प्राविधान किया है। पराली जलाने की प्रथा को तोड़ने के लिए कृषि विभाग,बिहार सरकार द्वारा अनेक कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। कृषि यांत्रिकरण योजना के माध्यम से रीपर कम बाईंडर, हैप्पी सीडर तथा रोटरी मल्चर पर आकर्षक अनुदान की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई है। इसके अलावे कृषि यंत्र बैंक भी स्थापित किया जा रहा है, जिसमें रियायती दर पर पराली प्रबंधन करने वाले यंत्र उपलब्ध रहेंगे।सभी हार्वेस्टर मालिकों को अपने हार्वेस्टर में जीपीएस लगाने को कहा गया है, साथ ही हार्वेस्टर में एसएमएस का प्रयोग कर ही फसलों की कटाई करेंगे। ऐसा नहीं करने वाले हार्वेस्टर मालिकों को चिन्हित कर विधि सम्मत कार्रवाई की जायेगी। कृषि विभाग द्वारा पराली जलाने वाले किसानों पर कार्रवाई भी की जा रही है, जिसमें किसानों का पंजीकरण पर रोक लगाते हुए कृषि विभाग द्वारा उपलब्ध कराये जा रहे सभी प्रकार के अनुदान से वंचित करने का निर्णय लिया गया है । इतने कठोर कदम उठाने के वावजूद बिना भय के किसान पराली जला रहे है जो कत्तई उचित नहीं है।

प्रभावी धान पुआल प्रबंधन के लाभ

धान के भूसे का कुशल प्रबंधन करने से अनेक लाभ है जैसे मृदा स्वास्थ्य और उर्वरता में सुधार होता है। मृदा सजीव होती है।पर्यावरण प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी होती है। कृषि उत्पादकता में भारी वृद्धि होती है। पशु के लिए अतरिक्त आधार मिलता है। ऊर्जा उत्पादन और मूल्य वर्धित उत्पादों के माध्यम से आर्थिक लाभ मिलता है। मशरूम उत्पादन के लिए सर्वोत्तम सस्ट्रेट होने की वजह से इसका उपयोग करके मशरूम उत्पादन किया जा सकता है।

निष्कर्ष

धान की पुआल का उचित प्रबंधन टिकाऊ कृषि और पर्यावरण संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। मृदा संशोधन, पशु चारा उपयोग, ऊर्जा उत्पादन, मल्चिंग, कम्पोस्टिंग और बायोमास रूपांतरण जैसे विभिन्न तरीकों को अपनाकर, हम कृषि और पर्यावरण के लिए कई लाभ प्राप्त करते हुए धान के भूसे से जुड़ी चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं। सरकारी नीतियां और नियम जिम्मेदार धान के भूसे प्रबंधन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, और सकारात्मक बदलाव लाने के लिए किसानों के बीच जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है। अंततः, धान की पुआल का कुशल प्रबंधन कृषि की समग्र स्थिरता और पर्यावरण के दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है। की भलाई में योगदान देता है।